आरंभ .. एक अंश का..
मैं अंश .. हूँ तेरा
तू ना माने .. मैं मानती हूँ
तू ना जाने .. मैं जानती हूँ
एक दिन मिला था तू मुझे!!!
कुछ मिला .. तेरा साथ
कुछ बना .. एक सपना
कुछ टूटा .. एक ख़याल
कुछ छूटा .. एक हिस्सा
कुछ साथ ..बस यादें
कुछ यादें .. एक हँसी
कुछ यादें ..एक दर्द
कुछ पल .. एक जीवन
एक जीवन मैं .. तेरा ही
तू ना माने .. मैं मानती हूँ
तू ना जाने .. मैं जानती हूँ
मैं भी मिलूंगी एक दिन तुझ में
अंत ...
या कहें अनंत
एक अंश तेरा
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3 टिप्पणियां:
yaar tumhari kavita samajhna bada mushkil kaam hai. Padh ke aisa lagta hai acha likha hai par kyon likha hai aur kya kahna chahti ho yeh samajhne ki samajh mujh mein nahi shayad...
Kehte hain Prem se bada koi ishwar nahi....Kya yeh ishwar prem hai..
Whoever is it but Shilp achchha hai...
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