जीवन की आपा धापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पैर बैठ कभी ये सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना, उसमें क्या बुरा भला
जिस दिन मेरी चेतना जागी मैने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पैर एक भुलावे में भूला,
हर एक लगा है अपनी अपनी दें लें में,
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भॉँच्चका सा --
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊं किस जगह?
फिर एक तरफ़ से आया ही तो धक्का सा,
मैने भी बहना शुरू किया इस रेले में;
क्या बाहर की तेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का उहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा वही मन के अंदर से उबल चला
जीवन की आपा धापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी ये सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना, उसमें क्या बुरा भला
मेला जितना भड़कीला रंग रंगीला था
मानस के अंदर उतनी ही कमज़ोरी थी
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी
उतनी ही छोटी अपने कर की झोली थी
जितना ही बिर्मे रहने की थी अभिलाषा
उतना ही रेले तेज़ धकेले जाते थे
क्रय-वि क्रय तो ठंडे दिल से हो सकता है
ये तो भागा भागी की छीना जोरी थी
अब मुझ से पूछा जाता है क्या बतलाऊं
क्या मैं akinchan बिखराता पाठ पर आया
वह कौन रतन अनमोल ऐसा मिला मुझको
जिस पर अपना मान प्राण nichaavar कर आया
ये थी तक़दीरी बात, मुझे गुण-दोष ना दो
जिसको समझा था सोना वो मिट्टी निकली
जिसको समझा था आँसू वो मोती निकला
जीवन की आपा धापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी ये सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना, उसमें क्या बुरा भला
मैं जितना ही भूलुँ bhtkoon या भरमाऊं
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है
कितने ही मेरे पाँव पड़ें उँचे नीचे
प्रति पल वो मेरे पास चली ही आती है
मुझ पर विधि का अहसान बहुत सी बातों का
पर मैं kritgy उसका इस पर सब से ज़्यादा --
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती
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5 टिप्पणियां:
क्रमशः
मैं जहां खडा था कल उस थल पर आज नहीं
कल इसी जगह फ़िर पाना मुझको मुश्किल है
ले मापदण्ड जिसको परिवर्तित कर्देतीं केवल छूकर ही
देश काल की सीमायें जग दे मुझपर फ़ैसला उसे जैसा भाये
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में
जीवन के इस एक और
पेहलू से होकर निकल चला
जीवन की आपा धापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पैर बैठ कभी ये सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना, उसमें क्या बुरा भला
काफी सराहनीय प्रयास है | काफी दिनों बाद यह कविता इन्टरनेट पर मिली है और वह भी पूरी कविता | एक बार फिर से आप दोनों के प्रयास पर बधाई ! हालाँकि बीच में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग क्यूँ किया गया है और कई शब्दों की मात्राओं में भी दोष है | अगर इसे काबू में कर कर ले तो पाठकों को अच्छा अनुभव मिलेगा |
manisha,
many mistakes found.
phir bhi very good. Keep it up.
Sir if u can kindly post Bachchan sir's "SATRANGINI" also,,,,,Didn't find it anywhere
thanks for sharing this wonderful peice..
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