दो मासूम दिलों का खेल
दो मासूम के पलों का खेल
कब रोज़ी बना पता ना चला
Rikshawpullers..
एक दिन खेल में रिक्शा चलाई
काश पढ़ सकते किस्मत की लिखाई
वो खेल कब मेहनत में बदला
कब रोज़ी बना पता ना चला
Road labour..
सड़क किनारे, पत्थर पर पत्थर मारे
निशाना साढ़े, गोली जीते, गोली हारे
आज नन्हे हाथ पत्थर तोड़ते हैं
पत्थर कब माँ की दवाई बना, कब पिता की शराब
कब रोज़ी बना पता ना चला
Bangle makers..
माँ की चूड़ियों की खनक में
ग़ोदी में लेट कर पलक में
चूड़ियों के रंग चमकते थे
रंग कब आँखों से उतर गये
कब साँसों में धुआँ भर गये
कब रोज़ी बने पता ना चला
क्या ये पत्थर मेरा घर बनाएँगे
क्या ये सड़क मुझे घर पहुँचाएगी
क्या ये रंग मेरे घर में बिखरेंगे
क्या दिन वो कभी आएँगे ..!!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें