रविवार, 28 जनवरी 2007

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ख़ुद को पाने की तलाश जहाँ से शुरू
राहें खुलती रही , मोड़ मिलते रहे.
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अहसास -
दिए भी.. लिए भी
ना खुदा को पता
ना उसकी खुदाई को
और दिलों का सौदा हो गया
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ज़िंदगी दो पल.
दो पल,
तूने मांगे इंतज़ार में
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बा-खुदा ख़ैर मनाई जिसकी
उसी के क़त्ल का इल्ज़ाम लगा...
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1 टिप्पणी:

Dutta Sujeet ने कहा…

Yeh Snapshorts wale ache lage mujhe. Samajhne mei jiyada mehnat mushhakkat nahi karni padi. Chand shabd aur goodh matlab